नौतन में छठ की खरीदारी को लेकर बाजारों में रौनक, सभी बाजारों में उमड़ी भीड़
नौतन से फिरोज अंसारी की रिपोर्ट
नौतन प्रखंड में छठ महापर्व की रौनक शुरू हो चुकी है।नहाय-खाय के साथ आज से शुरू हुए इस पवित्र पर्व को लेकर नौतन बाजार और प्रखंड के सभी चौक-चौराहों पर खरीदारी की धूम मची है। सूर्यदेव और छठी मैया की आराधना के लिए श्रद्धालु पूजा सामग्री, फल, और परंपरागत वस्तुओं की खरीदारी में जुटे हैं। बाजारों में सजी दुकानों, रंग-बिरंगे सजावटी सामानों और छठ गीतों की गूंज ने माहौल को भक्तिमय बना दिया है। नौतन बाजार के सभी बाजारों में सुबह से ही चहल-पहल शुरू हो गई। बांस की दौरी, सूप, ठेकुआ के सांचे, गन्ना, केला, नारियल और सेव जैसी चीजों की दुकानों पर भीड़ लगी रही। सूर्य देव और छठी मैया की पूजा के लिए लोग उत्साहपूर्वक पूजा सामग्री, फल, और पारंपरिक वस्तुओं की खरीदारी में जुटे हैं। बाजारों में रंग-बिरंगी सजावट और छठ गीतों की मधुर धुनों ने माहौल को भक्तिमय और उत्सवी बना दिया है। नौतन बाजार के मुख्य सड़कों पर सुबह से ही खरीदारों का तांता लगा रहा। बांस की दौरी, सूप, केला, नारियल, गन्ना और सेब जैसे फलों की दुकानों पर लंबी कतारें देखी गईं। स्थानीय लोगों ने बताया कि छठ पूजा के कारण बाजार में रौनक है। बाजार में बड़ा दउरा 400 से 600 रुपए, दौरी 250 से 400 रुपये, सूप व सिपुली 150 से 250 रुपये बिक रहे हैं। वहीं सभी तरह के फल भी बहुत मंहगे दामों में बिक रहे हैं। लेकिन महंगाई के बावजूद भी श्रद्धालुओं का उत्साह कम नहीं है। इसके अलावा महिलाएं नई साड़ियां, चूड़ियां, बिंदी और श्रृंगार सामग्री खरीदने में व्यस्त दिखीं, क्योंकि छठ पूजा में नये वस्त्र धारण करने की परंपरा है। नौतन बाजार के अन्य चौक-चौराहों जैसे खलवां, सिसवां और छोटे बाजारों में भी यही उत्साह दिखाई दिया। एक महिला व्रती ने कहा कि छठ मइया की कृपा से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि की कामना है। हर रस्म पूरी श्रद्धा से निभाएंगे। बाजारों में छठी गीतों की मधुर धुनें गूंज रही हैं, जो पर्व की सांस्कृतिक समृद्धि को और बढ़ा रही हैं। बता दें कि नहाय-खाय से शुरू होकर खरना के बाद अगले दिन जेल में खड़ा होकर अस्ताचलगामी सूर्य तथा अंतिम दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य के साथ संपन्न होने वाले इस महापर्व में सभी प्राकृतिक चीजों का ही महत्व होता है। सबसे लंबे इस त्योहार व व्रत में सामाजिक व सामुदायिक एकता दिखती है, जिसमें कोई ऊंच-नीच या भेद-भाव का कोई स्थान नहीं होता है। इस महापर्व में सभी श्रद्धालु एक साथ एक कतार में खड़े होकर आपसी सद्भाव के साथ सूर्य को अर्घ्य देते हैं और इस त्योहार को मनाते हैं।












