वेंडिंग जोन पर 89 लाख से अधिक खर्च, फिर भी सवालों के घेरे में नगर निगम सीतामढ़ी की कार्यशैली
—- फुटपाथी वेंडरों के पुनर्वास को लेकर उठी पारदर्शिता की मांग—-
डॉ.राहुल कुमार द्विवेदी,बिहार संपादक,सीतामढ़ी।
सीतामढ़ी नगर निगम क्षेत्र में फुटपाथी वेंडरों के लिए वर्ष 2022 में नगर परिषद द्वारा बनाए गए वेंडिंग जोन अब सवालों के केंद्र में आ गए हैं। सीतामढ़ी ईख उत्पादक संघ के वरिष्ठ सदस्य नागेन्द्र प्रसाद सिंह ने नगर निगम से वेंडिंग जोन के निर्माण और उसके उपयोग को लेकर विस्तृत जानकारी सार्वजनिक करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि नगर निगम द्वारा करोड़ों रुपये खर्च कर बनाए गए ये वेंडिंग जोन आज भी अपने मूल उद्देश्य को पूरी तरह पूरा नहीं कर पा रहे हैं, जो गंभीर चिंता का विषय है। नागेन्द्र प्रसाद सिंह ने बताया कि नगर निगम क्षेत्र में तत्कालीन नगर परिषद वर्ष 2022 में फुटपाथी वेंडरों के पुनर्वास एवं व्यवस्थित रोजगार के उद्देश्य से तीन वेंडिंग जोन के लिए स्थलों का चयन किया गया था। इसके बाद इन तीनों वेंडिंग जोन के निर्माण पर कुल 89 लाख 63 हजार 981 रुपये की राशि खर्च की गई। योजना का उद्देश्य शहर के फुटपाथों से अव्यवस्थित ठेला-खोमचा हटाकर वेंडरों को सम्मानजनक और सुरक्षित स्थान उपलब्ध कराना था, ताकि यातायात व्यवस्था सुचारु रहे और वेंडरों को भी स्थायी रोजगार मिल सके। उन्होंने सवाल उठाया कि योजना लागू हुए अब तीन वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन आज तक यह स्पष्ट नहीं है कि इन वेंडिंग जोनों का वास्तविक उपयोग किस हद तक हो रहा है। नागेन्द्र प्रसाद सिंह ने कहा कि नगर निगम को यह जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए कि इन तीन वर्षों में कितने फुटपाथी वेंडरों ने वेंडिंग जोन में दुकान या ठेला लगाने के लिए आवेदन किया। साथ ही यह भी बताया जाना चाहिए कि कुल कितने वेंडरों को जगह आवंटित की गई और उनमें से कितने वेंडरों ने वास्तव में वहां अपना ठेला या खोमचा लगाकर व्यवसाय शुरू किया। उन्होंने यह भी मांग की कि नगर निगम यह स्पष्ट करे कि वेंडिंग जोनों में अभी कितनी जगह खाली पड़ी हुई है। यदि बड़ी संख्या में स्थान खाली हैं, तो इसके पीछे क्या कारण हैं—क्या स्थान वेंडरों की जरूरत के अनुरूप नहीं हैं, क्या वहां मूलभूत सुविधाओं का अभाव है, या फिर आवंटन प्रक्रिया में ही कोई खामी है। इन सवालों के जवाब सार्वजनिक होना आवश्यक है, ताकि आम जनता को यह पता चल सके कि सरकारी धन का सही उपयोग हुआ है या नहीं। नागेन्द्र प्रसाद सिंह ने कहा कि वेंडिंग जोन के निर्माण के दौरान सरकार और नगर निगम ने बड़े-बड़े दावे किए थे कि इससे न केवल फुटपाथी वेंडरों को स्थायी आजीविका मिलेगी, बल्कि शहर की सुंदरता और यातायात व्यवस्था में भी सुधार होगा। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि कई जगहों पर वेंडिंग जोन या तो खाली पड़े हैं या फिर वहां गिने-चुने वेंडर ही व्यवसाय कर रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि लगभग 90 लाख रुपये की राशि खर्च करने के बाद भी अपेक्षित परिणाम क्यों नहीं मिल पाए। उन्होंने यह भी कहा कि नगर निगम स्तर से अब तक इन वेंडिंग जोनों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए क्या-क्या कदम उठाए गए, इसकी भी जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए। क्या वेंडरों को जागरूक करने के लिए कोई अभियान चलाया गया, क्या आवंटन प्रक्रिया को सरल बनाया गया, क्या वहां पानी, शौचालय, बिजली, सुरक्षा और साफ-सफाई जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई गईं—इन सभी बिंदुओं पर स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए।
नागेन्द्र प्रसाद सिंह का कहना है कि पारदर्शिता लोकतांत्रिक व्यवस्था की आत्मा है। जब सार्वजनिक धन से कोई योजना लागू की जाती है, तो उसकी प्रगति, उपयोग और परिणाम की जानकारी जनता को मिलनी चाहिए। इससे न केवल प्रशासन की जवाबदेही तय होती है, बल्कि भविष्य में ऐसी योजनाओं को और बेहतर तरीके से लागू करने में भी मदद मिलती है। उन्होंने नगर निगम के जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों से आग्रह किया कि वे वेंडिंग जोन से संबंधित सभी आंकड़े और रिपोर्ट सार्वजनिक करें, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि योजना कहां सफल रही और कहां सुधार की आवश्यकता है। साथ ही, यदि कहीं कमियां पाई जाती हैं तो उन्हें दूर कर वेंडिंग जोनों को वास्तव में फुटपाथी वेंडरों के लिए उपयोगी बनाया जाए।
स्थानीय लोगों और वेंडरों का भी मानना है कि यदि वेंडिंग जोन को सही तरीके से संचालित किया जाए, तो इससे न केवल वेंडरों की आय बढ़ सकती है, बल्कि शहर की व्यवस्था भी बेहतर हो सकती है। अब देखने वाली बात यह होगी कि नगर निगम इस मांग पर क्या रुख अपनाता है और वेंडिंग जोन को लेकर उठे सवालों का जवाब कब और कैसे देता है।











