“नेशन फर्स्ट” पुस्तक भेंट कर मिथिलेश ने दिया वैचारिक संदेश, शुभकामना में नीतिन नवीन से कहा “हस्तिनापुर अब आपके हवाले”
सीतामढ़ी के पूर्व विधायक एवं नगर के लोकप्रिय जननेता डॉ. मिथिलेश कुमार की राजनीतिक और सामाजिक कार्यशैली में भारतीय सांस्कृतिक विरासत एवं राष्ट्रवादी चिंतन की झलक हमेशा स्पष्ट रूप से देखने को मिलती रही है। वे केवल औपचारिक राजनीतिक शिष्टाचार तक सीमित नहीं रहते, बल्कि प्रत्येक अवसर को वैचारिक संवाद और सांस्कृतिक संदेश का माध्यम बना देते हैं। यही कारण है कि उनके द्वारा किए गए प्रतीकात्मक कार्य और भेंटें भी गहरे अर्थ और विचारधारा को प्रतिबिंबित करती हैं। डॉ. मिथिलेश का मानना है कि राजनीति केवल सत्ता का साधन नहीं, बल्कि राष्ट्र की सांस्कृतिक चेतना को जागृत रखने का माध्यम भी है। इसी सोच के तहत वे कई अवसरों पर अपने संगठन के वरिष्ठ नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को शस्त्र और शास्त्र की भेंट देकर भारतीय परंपरा में शक्ति और ज्ञान के संतुलन का संदेश देते रहे हैं। वहीं कभी शंख भेंट कर वे सनातन संस्कृति, शुभारंभ और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक प्रस्तुत करते हैं। उनके इन प्रतीकों में भारतीय सभ्यता की आत्मा और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की भावना स्पष्ट रूप से झलकती है। इसी कड़ी में हाल ही में भारतीय जनता पार्टी के नव मनोनीत कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन नवीन से मुलाकात के दौरान भी डॉ. मिथिलेश की चिंतन शैली एक बार फिर चर्चा का विषय बनी। नितिन नवीन के राष्ट्रीय कार्यालय में आयोजित इस मुलाकात के दौरान जहां पार्टी कार्यकर्ताओं ने फूल-मालाओं और गुलदस्तों से उनका भव्य स्वागत किया, वहीं डॉ. मिथिलेश ने परंपरागत भेंट से अलग हटकर भाजपा के इतिहास और वैचारिक यात्रा को समर्पित पुस्तक नेशन फर्स्ट भेंट की। यह पुस्तक केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रप्रथम की विचारधारा, संघर्ष, त्याग और संगठनात्मक यात्रा का दस्तावेज है। इसे भेंट कर डॉ. मिथिलेश ने स्पष्ट संदेश दिया कि पद और जिम्मेदारी के साथ-साथ पार्टी की वैचारिक विरासत और राष्ट्र के प्रति समर्पण को आगे बढ़ाना सबसे बड़ा दायित्व है। मुलाकात के दौरान डॉ. मिथिलेश ने अपने शुभकामना संदेश में प्रतीकात्मक शब्दों में कहा हस्तिनापुर अब आपके हवाले। उनके इस कथन को उपस्थित नेताओं और कार्यकर्ताओं ने गहरे अर्थ में लिया। यह संदेश न केवल नेतृत्व की जिम्मेदारी का संकेत था, बल्कि महाभारतकालीन हस्तिनापुर की तरह संगठन और राष्ट्र को न्याय, नीति और धर्म के मार्ग पर आगे बढ़ाने की अपेक्षा का प्रतीक भी माना गया। डॉ. मिथिलेश की इस सोच और कार्यशैली को लेकर राजनीतिक और सामाजिक हलकों में यह चर्चा आम है कि वे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को केवल भाषणों तक सीमित नहीं रखते, बल्कि उसे व्यवहार, प्रतीकों और कार्यों के माध्यम से जीवंत रखते हैं। उनके अनुसार भारत की राजनीति तभी सशक्त हो सकती है जब वह अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी रहे और राष्ट्रहित को सर्वोपरि माने। कार्यकर्ताओं का कहना है कि डॉ. मिथिलेश की यही विशेषता उन्हें एक अलग पहचान देती है। वे युवाओं को भी भारतीय संस्कृति, इतिहास और राष्ट्रवादी विचारधारा से जोड़ने का प्रयास करते रहते हैं। उनके द्वारा दी गई भेंटें और संदेश लंबे समय तक याद रखे जाते हैं और संगठन में वैचारिक प्रेरणा का स्रोत बनते हैं। कुल मिलाकर, नितिन नवीन से हुई इस मुलाकात ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि डॉ. मिथिलेश की राजनीति केवल समसामयिक घटनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि उसमें भारत की प्राचीन सांस्कृतिक चेतना, इतिहासबोध और राष्ट्रप्रेम की निरंतर झलक मिलती है। यही कारण है कि उनकी प्रत्येक पहल राजनीतिक से अधिक वैचारिक और सांस्कृतिक महत्व रखती है।











