सीतामढ़ी सदर अस्पताल में पार्किंग घोटाला उजागर, पांच साल की उगाही सरकारी खाते में जमा नहीं, रातों-रात पार्किंग खाली, जिम्मेदारों पर बड़े सवाल
सीतामढ़ी। सदर अस्पताल परिसर में पार्किंग शुल्क वसूली को लेकर बड़ा वित्तीय घोटाला सामने आया है। स्थानीय लोगों और अस्पताल सूत्रों की मानें तो पिछले पाँच वर्षों से पार्किंग शुल्क के नाम पर लाखों रुपये की उगाही की गई, लेकिन उसकी एक भी पाई सरकारी राजस्व में जमा नहीं हुई। पूरे मामले के प्रकाश में आने के बाद स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली पर गंभीर प्रश्नचिह्न लग गया है।
सवाल पूछते ही रातों-रात पार्किंग हटाई गई
मामले में उस समय नया मोड़ आया, जब मीडिया प्रतिनिधियों ने प्रभारी सिविल सर्जन से इस बारे में जानकारी मांगी। सवाल उठते ही कुछ ही घंटों के भीतर रातों-रात पार्किंग स्थल को पूरी तरह खाली करा दिया गया। स्थानीय लोगों ने बताया कि अचानक की गई यह कार्रवाई यह संकेत देती है कि भीतरखाने कोई न कोई अनियमितता जरूर चल रही थी, जिसे छुपाने का प्रयास किया गया।
बिना अनुबंध व जांच के वर्षों से चल रहा था संचालन
अस्पताल आने वाले मरीजों और परिजनों का कहना है कि पार्किंग की वसूली लंबे समय से मनमाने ढंग से की जा रही थी।
न कोई आधिकारिक अनुबंध, न कोई फीस निर्धारण की वैध व्यवस्था, न कोई राजस्व जमा का रिकॉर्ड। इसके बावजूद प्रतिदिन सैकड़ों वाहनों से शुल्क वसूला जाता रहा। अनुमान है कि पाँच वर्षों में यह राशि लाखों में पहुँच चुकी होगी। सवाल यह है कि बिना किसी वैध अनुमति के यह संचालन कब से, कैसे और किनकी संरक्षण में जारी रहा?
जिम्मेदारी किसकी? प्रशासनिक खामियों ने बढ़ाया संदेह
स्वास्थ्य विभाग के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि इतनी लम्बी अवधि तक किसी अनियमित गतिविधि का चालू रहना तभी संभव है जब विभागीय स्तर पर किसी न किसी स्तर की ‘मौन सहमति’ मिली हो। अब सबसे बड़ा सवाल है कि क्या अस्पताल प्रबंधन को इसकी जानकारी थी? यदि थी, तो कार्रवाई क्यों नहीं की गई? यदि नहीं, तो फिर निगरानी तंत्र की विफलता का जिम्मेदार कौन? स्थानीय लोगों का आरोप है कि अस्पताल प्रबंधन की ढिलाई ने सरकारी राजस्व को भारी नुकसान पहुँचाया है, और इसकी निष्पक्ष जांच आवश्यक है।
“जांच का आदेश दे दिया गया है” – प्रभारी सिविल सर्जन
प्रभारी सिविल सर्जन डॉ. जेड जावेद ने बताया कि मामले की गंभीरता को देखते हुए सदर अस्पताल उपाधीक्षक डॉ. मुकेश कुमार को जांच करने का आदेश दे दिया गया है और दोषी पाए जाने पर कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि राजस्व की एक-एक पाई का हिसाब लिया जाएगा और लम्बे समय से चल रही अनियमितताओं को खत्म करने के लिए सख्त कदम उठाए जाएंगे।
जनता की मांग – पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच हो
मरीजों के परिजन और आम नागरिकों ने पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग की है, ताकि यह साफ हो सके कि लाखों रुपये आखिर गए कहां? इसे किसकी मिलीभगत से वर्षों तक दबाकर रखा गया? और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या ठोस कदम उठाए जाएंगे?
अस्पताल की छवि पर दाग
सीतामढ़ी सदर अस्पताल पहले से ही व्यवस्था और संसाधनों की कमी को लेकर चर्चाओं में रहता है। अब इस घोटाले ने अस्पताल की पारदर्शिता और प्रशासन की विश्वसनीयता पर बड़ा दाग लगा दिया है। मरीजों का मानना है कि यदि अस्पताल जैसी संवेदनशील जगह पर भी वित्तीय अनियमितताएं चल रही हैं, तो सामान्य जनता के हितों की रक्षा कैसे होगी? कुल मिलाकर, पार्किंग घोटाला केवल राजस्व की चोरी का मामला नहीं है, बल्कि यह अस्पताल प्रशासन की निगरानी, पारदर्शिता और जवाबदेही की व्यापक विफलता को भी उजागर करता है। जांच रिपोर्ट के आने के बाद ही सच्चाई सामने आएगी कि आखिर इस पूरे खेल का संचालक कौन था और पाँच साल की उगाही कहां गायब हो गई।












