कैसे पार लगेगी सुनील कुमार पिंटू की नैया? कार्यकर्ताओं की नाराज़गी और जनता की बेरुखी से चुनौतीपूर्ण हुआ मुकाबला
बिहार संपादक,डॉ.राहुल कुमार द्विवेदी, सीतामढ़ी। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे और अन्तिम चरण में मतदान की तारीख नजदीक आने के साथ ही सीतामढ़ी विधानसभा क्षेत्र (संख्या-28) में सियासी तापमान तेजी से चढ़ने लगा है। इस बार की सबसे दिलचस्प लड़ाई यहां भाजपा प्रत्याशी सुनील कुमार पिंटू के इर्द-गिर्द घूम रही है। पार्टी ने अंतिम क्षणों में दांव चलकर पिंटू को टिकट दिया, पर अब सवाल यह उठ रहा है क्या कार्यकर्ताओं की नाराज़गी और जनता की बेरुखी के बीच उनकी नैया पार लग पाएगी? तीन बार विधायक रह चुके और एक बार पर्यटन मंत्री रहे पिंटू कभी भाजपा के कद्दावर नेता माने जाते थे। परंतु 2019 में उन्होंने पार्टी से किनारा कर जदयू का दामन थाम लिया था। जदयू ने उन्हें सीतामढ़ी लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया और वे जीत भी गए। हालांकि, पांच वर्ष बाद एक बार फिर उन्होंने पाला बदलते हुए भाजपा में वापसी कर ली। पार्टी ने भी पुराने सिपाही को गले लगाते हुए विधानसभा से टिकट थमा दिया। लेकिन, यह दांव कितना सफल होगा, यह कहना अभी मुश्किल दिख रहा है। भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं और कोर वोटरों में पिंटू की उम्मीदवारी को लेकर तीखी नाराज़गी देखी जा रही है। पार्टी के स्थानीय पदाधिकारियों का आरोप है कि जिस व्यक्ति ने सत्ता और अवसर के समय पार्टी छोड़ी, उसे आज फिर टिकट देना समर्पित कार्यकर्ताओं के मनोबल पर चोट है। कई बूथ स्तर के कार्यकर्ता अब निष्क्रिय दिख रहे हैं, जबकि कुछ अन्य ने अपने स्तर पर चुप्पी की रणनीति अपनाई है। पार्टी के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, पार्टी को यहां मिथिलेश के बाद किसी स्थानीय कार्यकर्ताओं में से किसी चेहरे को मौका देना चाहिए था। पिंटू जी तो लंबे समय से इलाके से दूर हैं, जनता उन्हें देखना तो छोड़िए, पहचानती तक नहीं। ग्रामीण इलाकों में पिंटू के प्रति जनता का उत्साह ठंडा नज़र आ रहा है। खैरवा, मनियारी, विश्वनाथपुर और पुनौरा, बिशनपुर , बेरबास जैसे क्षेत्रों के मतदाताओं का कहना है कि अब तक उन्होंने प्रत्याशी को आमने-सामने नहीं देखा। गांवों में सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा और सिंचाई जैसी मूलभूत सुविधाओं के अभाव ने नाराज़गी को और बढ़ाया है। मैथौरा गांव के किसान रामकुमार कहते हैं, हर बार नेता आते हैं, वादे करते हैं, फिर गायब हो जाते हैं। पिंटू जी का नाम सुना है, लेकिन चेहरा अभी तक नहीं देखा। सीतामढ़ी सीट पर इस बार मुकाबला कई कोणों से दिलचस्प हो गया है। पिंटू के खिलाफ महागठबंधन के राजद के सिंबल पर सुनील कुमार कुशवाहा और मज़बूत निर्दलीय प्रत्याशी चंदेश्वर प्रसाद मैदान में हैं, जिनमें कुछ ने स्थानीय स्तर पर मजबूत पकड़ बना रखी है। खासकर निर्दलीय उम्मीदवार चंदेश्वर प्रसाद ने अपने जनसंपर्क अभियान से ग्रामीण वोट बैंक में सेंध लगाई है। वहीं राजद के सुनील कुशवाहा ने भी संगठन के स्तर पर मोर्चा कस रखा है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि अगर इस बार भी 2015 की तरह भाजपा का कोर वोट बैंक बिखर गया, तो पिंटू की राह और कठिन हो जाएगी। भाजपा को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता, केंद्र की योजनाओं और संगठन की मजबूती से पिंटू की नैया पार लग जाएगी। पार्टी जातीय समीकरण को भी अपने पक्ष में बताती है। पिंटू पिछड़ा वर्ग के तेली जाती से आते हैं, जो इस क्षेत्र में निर्णायक भूमिका निभाता है। भाजपा नेतृत्व का मानना है कि विरोध के बावजूद अंतिम समय में वोट कमल पर ही टिकेगा। बीते कुछ दिनों में पिंटू ने भी अपनी रणनीति बदली है। अब वे लगातार जनसंपर्क और नुक्कड़ सभाओं के जरिए जनता तक पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा है कि सीतामढ़ी मेरा कर्मभूमि है, यहां की जनता ने मुझे अपना विश्वाश देकर तीन बार विधायक बनाया और एक बार लोकसभा तक पहुंचाया है, अब मैं विधानसभा से फ़िर से सेवा करना चाहता हूं। हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अंतिम क्षणों का प्रचार उतना प्रभावी नहीं होता, जितना वर्षों की उपस्थिति से बनता है। सीतामढ़ी विधानसभा सीट हमेशा से भाजपा की परंपरागत सीट मानी जाती रही है। लेकिन इस बार हालात कुछ अलग हैं। एक ओर पुराने कार्यकर्ताओं की नाराज़गी और जनता की दूरी है, तो दूसरी ओर भाजपा की रणनीतिक शक्ति और पिंटू का अनुभव। अब देखना यह होगा कि क्या मोदी लहर और संगठनात्मक मजबूती पिंटू की डूबती नैया को पार लगा पाएगी, या फिर जनता 2015 के समीकरण को दोहराते हुए सुनील कुमार कुशवाहा या निर्दलीय उम्मीदवार में से किसी नए चेहरे पर भरोसा जताएगी।












