सीतामढ़ी विधानसभा : “सुनील बनाम सुनील”, दोबारा दिख सकता है 2015 वाला चुनावी मुकाबला
डॉ. राहुल कुमार द्विवेदी, ,सीतामढ़ी।
बिहार विधानसभा चुनाव—2025 का ऐलान होते ही सीतामढ़ी की सियासत में हलचल तेज हो गई है। राजनीतिक गलियारों में सबसे ज्यादा चर्चा इसी बात की हो रही है कि यहां एक बार फिर से 2015 वाला मुकाबला देखने को मिल सकता है। सूत्रों के अनुसार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपने पुराने प्रत्याशी व पूर्व सांसद सुनील कुमार उर्फ़ पिंटू को मैदान में उतारने जा रही है। दूसरी ओर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से सुनील कुशवाहा की सक्रिय दावेदारी ने चुनावी समीकरणों को दिलचस्प बना दिया है। ऐसे में सीतामढ़ी विधानसभा की जंग “सुनील बनाम सुनील” हो सकती है।
भाजपा खेमे में हलचल
भाजपा द्वारा पिंटू को टिकट दिए जाने की आंतरिक पुष्टि के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह से ज्यादा नाराजगी देखने को मिल रही है। सीतामढ़ी भाजपा कार्यालय में हुई बैठक में कई बूथ, मंडल और पंचायत अध्यक्षों ने खुलकर असंतोष जाहिर किया। कार्यकर्ताओं का आरोप है कि शीर्ष नेतृत्व द्वारा हर बार “थोपा हुआ उम्मीदवार” जनता की पसंद नहीं रहा है। एक स्थानीय कार्यकर्ता ने यहां तक कह दिया—
“थोपल-थापल उम्मीदवार न चोलबे, इस बार खेला होबे।”
यह बयान स्पष्ट संकेत देता है कि पिंटू की उम्मीदवारी पर भाजपा की स्थानीय इकाई बंटी हुई है। हालांकि पिंटू खुद को भाजपा का मजबूत चेहरा मानते हैं और अपने संगठनात्मक नेटवर्क व पूर्व सांसद के अनुभव को अपनी सबसे बड़ी ताकत बताते हैं।
राजद में जोश, कुशवाहा को लेकर तैयारियां
इधर राजद खेमे में सुनील कुशवाहा को लेकर उत्साह का माहौल है। राजद कार्यकर्ता और स्थानीय नेता उन्हें “सीतामढ़ी का बेटा” बताकर प्रचार में जुट गए हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार राजद इस बार पूरी ताकत के साथ उन्हें मैदान में उतारने की तैयारी में है। कुशवाहा का स्थानीय स्तर पर संगठन पर गहरी पकड़ और पिछड़े वर्गों में मजबूत जनाधार उनकी सबसे बड़ी पूंजी मानी जाती है।
2015 के चुनाव में भी यही मुकाबला सुर्खियों में रहा था, जब दोनों सुनीलों के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली थी। अब 2025 में फिर से वही हालात बनते दिख रहे हैं।
मुकाबला दिलचस्प, समीकरणों पर सबकी नजर
दोनों ही उम्मीदवारों की अपनी-अपनी खासियतें हैं। सुनील पिंटू भाजपा और संघ परिवार के बीच एक बड़ा चेहरा माने जाते हैं। वहीं सुनील कुशवाहा का स्थानीय जनसंपर्क, संगठन पर पकड़ और जातीय समीकरण उन्हें मजबूत दावेदार बनाता है।
सीतामढ़ी विधानसभा की राजनीति हमेशा से समीकरणों के सहारे घूमती रही है। यहां का मतदाता विकास के मुद्दों के साथ-साथ सामाजिक संतुलन पर भी नजर रखता है। यही कारण है कि इस बार यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता भाजपा के “सुनील” पिंटू को चुनती है या फिर राजद के “सुनील” कुशवाहा को आगे बढ़ाती है।
जनता कर रही है इंतजार
सीतामढ़ी विधानसभा के मतदाता अब चुनावी शंखनाद का इंतजार कर रहे हैं। स्थानीय चाय दुकानों से लेकर चौक-चौराहों तक सिर्फ यही चर्चा है कि “कौन सा सुनील जीतेगा?” लोग कहते हैं कि मुकाबला जितना दिलचस्प होगा, उतना ही कठिन फैसला जनता को करना होगा।
वहीं राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यदि भाजपा के भीतर असंतोष शांत नहीं हुआ, तो राजद के सुनील कुशवाहा को इसका सीधा फायदा मिल सकता है। हालांकि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व मानता है कि चुनाव आते-आते कार्यकर्ता एकजुट हो जाएंगे और पिंटू को जीत दिलाएंगे।
सीतामढ़ी की सियासत में “सुनील बनाम सुनील” का यह संग्राम इस बार और भी दिलचस्प होने जा रहा है। दोनों ही उम्मीदवार अपनी-अपनी ताकत और जनाधार पर भरोसा कर रहे हैं। अब देखना यह है कि जनता की अदालत में 2025 में किस सुनील का सिक्का चलता है।
सबसे अहम सवाल यह है कि क्या जनता भाजपा वाले सुनील (पिंटू) को चुनेगी या फिर राजद वाले सुनील (कुशवाहा) को समर्थन देगी? इसका जवाब आने वाले दिनों में मतपेटियों से ही मिलेगा।












